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________________ वास्तुसार-प्रथमप्रकरण दसमंस-अट्ठमंसं खडंस चउरंस वित्थरस्सहिये। दीहं सव्वगिहस्स य दिय-खत्तिय-वइस-सुद्दाणं ॥ ४४ हस्त विप्र क्षत्रिय वैश्य शूद्र अंत्यज अस्यार्थ पुनः यन्त्रेणाह विस्तर ३२ २८ २४ । २० दीर्घ ३५७४/३२॥ २८ | २५ १६ अंगुल सत्तहिय सयं उदए गब्भे य होइ पणसीई । गणियाणुसार दीहे सुगिहालिंदरस इय माणं ॥ ४५॥ पव्वंगुलि चउवीसिहिं वैत्तीसि करंगुलेहि कंवीया । अट्ठि जवि तिरिय गेहं पव्वंगुलु इकु जाणेह ॥ ४६ पासाय-रायमंदिर-तडाग-पायार-वत्थभूमाई । इय कंबीहि गणिजहि गिहसामिकरेहिं गिहवत्थू ॥ ४७ गिहसामिसुहत्थेणं नीम्व विणा मिणसु वित्थर-दीहं । गुणि अद्वेहि विहत्तं सेस धयाई भवे आया ॥ ४८ धय १धूम २ सीह ३ सोणे ४ विस ५खर६ गय७ धंखि ८एइअट्ठाया। पुव्वाइ धयाइ ठिई फलं च नामाणुसारेण ॥ ४९ विप्पे धयाउ दिज्जा खत्तिय सीहाउ वइसि वसहाओ।" सुद्दाणे कुंजराया धंखायु मुणीण दायव्वा ॥ ५० धय गय सीहं दिज्जा संते ठाणे धओ य सव्वत्थ । गय पंचाइणे वसहा खेडय तह कबडाईसु ॥ ५१ १गिहाण य । २ इकिक गइंदं इअ परिमाणं । । इसके बाद मुद्रित में निम्नोक्त गाथाएं हैं-जं दीहवित्वराई भणियं तं सयलमूलगिहमाणं । सेसमलिंदं जाणह जहत्थियं जं बहीकम्मं ॥ ४६॥ ओवरय साल कक्खो वराईयं मूलगिहमिणं सव्वं । - अह मूलसालमज्झे जं वइ तं च मूलगिहं ॥४७॥ ३ छत्तीसिं। ४ कंबिआ। ५ अट्ठहिं जव मज्झेहिं । ६ भूमीय। ७ गणिजइ । ८ गिहसामिणो करेणं भित्ति विणा। ९ साणा। १० अट्ठ आय इमे। ११ खित्ते । १२ सुद्दे अ कुंजराओ धंखाउ मुणीण नायव्यं । १३ पंचाणण । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003822
Book TitleRatnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1996
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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