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________________ वास्तुसार-प्रथमप्रकरण सुक्कुदए रवितइए मंगलि छठेसु पंचमे जीवे । इय लग्गकए गेहे घेण-कणजुय दुसय वरिसाऊ ॥ २९ सुगिहत्थो ससिलग्गे गुरुकिंदे बलजुएसु विद्धिकरौं । कूरट्ठम अइअसुहा सोमा मज्झिम गिहारंभे ॥ ३० इक्केवि गिहे निच्छइ परगेहि परंसि सत्त- वारसमे । गिहसामि वण्णनाहे अवले परहत्थि हुईं गेहं ॥ ३१ बंभण सुक्क-बिहप्फइ रवि-कुज खत्तिय मँयंकु वइसो य । बुहु सुदु मिच्छ सणि तमु गिहसामिय वन्न जाणेह ॥ ३२ कूरा ति-छ-गारसगा सोमा किंदे तिकोणगे सुहया । १४११०।९।५ जइ अट्ठमो य कूरो अवस्स गिहसामि मारेइ ॥ ३३ ॥ इति गृहनीवनिवेशलग्नम् ॥ चित्तऽणुराह ति उत्तर रेवइ-मिय-रोहिणी य विद्धिकरा । मूलऽहा असलेसा जिट्ठा पुत्तं विणासेइ ॥ ३४ भैरणी महा ति पुव्वा गिहसामिहया विसाह तियनासं । कित्तिय अग्गिभयंकर गिहप्पवेसे य ठिइ समए ॥ ३५ तिहि रित्त ४।९।१४ वार कुज-रवि चरलग्ग विरुद्ध जोय दिणचंदं । वजिज गिहपवेसे सेसा तिहि-वार-लग्ग सुहा ॥ ३६ किंदैट्ठमंति कूरा १४७।१०।८।१२ असुहा ति छगारहा ३६।११ सुहा भणिया। सव्वे अट्ठम असुहा इय लग्गं गिहपवेसस्स ॥ ३७ १। २ दोवरिससयाउयं रिद्धी। ३ बलजुओ। ४ करो। ५गहे। ६ होइ गिह । ७ मयंअ वइसो अ। ८ वण्ण नाह इमे। ९ सयल सुहजोयलग्गे नीमारंभे य गिहपवेसे अ। १० पुव्वतिगं मह भरणी गिहसामिवहं विसाहत्थीनासं। ११ समत्ते। १२ किंदु दु अडत कूरा। १३ किंदुतिकोणतिलाहे सुहया सोमा समा सेसे। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003822
Book TitleRatnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1996
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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