SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - गणितसार-चतुर्थाध्याय (२) अथ मुकातयमाहमुक्कातइ जं वरिसे तं गय दिण गुणवि वरिस दिणिभायं । पंचि सहस्सि मुकातइ नवि दिणि चउमासि किं हवइ ॥ ११ जित्ता दम्म मसेलिय दिजहि मासिक्कि ते तिभागूणा । सेस हवंति विसोवा दिवसे दिवसे मुणेयव्वा ॥ १२ (३) अथ धावकगतीलहुगइदिणसंखगुणं लहु-दीहगइस्स अंतरे भायं । लडदिणेहि मिलंती अप्पगई लहुगई दो वि ॥ १३ चउ जोयणीय पच्छा नवम दिणे सत्त जोयणी चलिओ। तस्स बहोडण हेऊ मिलेइ सो कइय दिवसेहिं ॥ १४ पंचाइ दु वडुंता जोयण दिवसेण चल्लए करहो।। जोयण चउदस करही कित्तिय दिवसेहि सो मिलइ ॥ १५ आइ - मज्झंत रासी अंताओ आइ हीण मज्झेण । भाए लडं बिउणं एगजुयं करह दिणमाणं ॥ १६ (४) अथ संवत्सरानयनमाहविक्कमाइ जे वरिस मास चित्ताइ करिवि दिण, छ मुणि नंद लदहिय मास ते वच्छर जुय पुण, नेव निहींण रस वरिस मास दुइ दुइ दिण ऊणय, ताजिय वच्छरु हवइ मास मुहरम माईणय,, ताजिक्कु पुणेवं करिवि पर अहिय मास सोहेवि पुणि । नेव मुंणि छ वरिस दुइ दिण अहिय पंडिय! विक्कमसमउ भणि ॥१७ ॥ इति देशाधिकारकरणसूत्रं सम्मत्तं ॥ (५) अथ वस्त्राधिकारमाह जुज पट्टोलय अतलस साराई पट्ट वत्थ एमाई । कर वासक ताणाई इय सुहमा थूल साडाई ॥ १८ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003822
Book TitleRatnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1996
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy