________________
६०
अथ वापी षट भेदि
चउरंस दीह वट्टा खडंस अट्ठस संखवत्ताई । बहुछंदि होंति वाकी (१वी) ते दिट्ठपमाणि गुणियंति ॥ ८६
॥ इति चितिव्यवहारसूत्र गा० १८ सम्मत्ता ॥
ठकुर- फेरू - विरचित
अथ क्रकचव्यवहारसूत्रकरणमाह
दारु जहच्छियमाणे तस्साउ जहिच्छ फलिह कीरंति । दुह दलु दीहु वित्रु गुणिज्ज फलहेहिं भागु ति ॥ ८७ अट्ट कर दीहु दारो करहु वित्थारि दलि तिहाउ करे । दीगु पाउ वित्थरि नवंसु दलि किमिह फलहेण ॥ ८८ अथ करवत्ते दारुच्छेदितगणना
करवत लीह जे हुई ते दीहिण गुणिय होंति हत्थाइं । वित्थरवसाउ कोडी चिरावणी अग्घमाणेण ॥ ८९
इग दिवढ विस्व सइ गजि दुति वित्थरि गजि असीहिं कोडी य । चहुं विवहि सट्ठि गजे पंचाइ नवंति चालीसे ॥ ९० दस्साइ जाव तेरस विसुवा वित्थारि ताव तीसेहिं । उवरं जा सोलस ता वीसि गजेहि कोडी य ॥ ९१ उवरि जा वीस विसुवा ता कोडी दसि गजेहि जाणेह | उवरि करवत्तु न चलइ इय भणियं सुत्तहारी हिं ॥ ९२ दारु गज सत्त दीहे विसोवगा अट्ठ सत्त वित्थारे । दस लीह फलह गारस चीरिय कइ कोडिया होंति ॥ ९३ अट्ठ जब कंवियंगुलि जवेगु करवत्त लीह फलहि इगे । वट्टस्स खंडकरणे पिंडं तं दीहु जाणेह ॥ ९४ महुव वड साल सीसम निंव सिरीसाइ सम चिरावणियं । खयरंजण कीर सवा सेंवलु सुरदारु गुणि पउणं ॥ ९५ ॥ इति ऋकचव्यवहारो समत्तो ॥ गाहा ९ ॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org