________________
ठकुर- फेरू-विरचित
परिहि चउत्थं भायं हय परिहि नवंसहिय खित्तं ॥ ६५ छकर दीहुदय वित्थर समवट्टं गोलयस्स पाहाणं । किं गणियं किं खित्तं जं हुइ तं भणहि पत्तेयं ॥ ६६ ४. अथ पाषाणस्य तौल्यमाह
घणकंबिय इक्केणं ढिल्लियसंभूय पाहणं सव्वं ॥ पंचास मणं जाय तुलिओ चउवीस तुल्लो [य] ॥ ६७ वंसी अडयालीसं मम्माणी सट्टि कसिणु बासट्ठी । जज्जावय कन्नाय उणवन्नकुडुक्कडो सट्ठी ॥ ६८
॥ इति खातव्यवहारसूत्रगाथा १५ सम्मत्ता ॥ अथ चितिव्यवहारमाहगोमट्टे पायसेवं चउरसे वै मुनरयं तकिं । सोवण पुलं वं वांवी इय नवविहा भित्ती ॥ ६९ पढममवि सुद्धभित्ती वित्थरदीहुदय गुणिय जं हवइ । तस्साउ वार वारी आलय कट्ठाउ सोहिज्जा ॥ ७० सेसाओ दसमंसं दिवडूयं मट्टियस्स घट्टे । सेसा पाहणसंखा हवंति घणहत्यमाणेण ॥ ७१ पंच कर भित्ति उदये दस दीह दुवित्थरे य तम्मज्झे । बारूति उदइ दु वित्थरि का संखा हवइ पाहाणे ॥ ७२ अथ इहानां गणना
दी वित्थरिपिंडे अद्धु तिहा अट्टमंसु इट्ट कमे । च रुदs दिवदु वित्थरि दह दीहे भित्ति के इट्टा ॥ ७३ १. अथ गोंमटमाह
गोमट्टमूलपरिही अद्धं पा परिहि गुणिय सनवंसं । भित्ति (ति) गब्भाओ चयणं बाहिर मज्झाउ तं खित्तं ॥ ७४ भित्ति (? ति) गब्भाओ परिही उणवीस छ वित्थरस्स किं चयणं । बाहिर परिही पंडिय ! चउवीसं किं हवइ खेत्तं ॥ ७५
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org