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ठक्कुर - फेरू - विरचित
तिकोणफलं विउलं भूभत्तं मज्झ लंबओ हवइ । भुवलंब वग्ग अंतरि सेसस्स पए हवइ अहवा ॥ ४१ भुवलंब वग्गपिंडं तस्स पए हवइ निच्छयं कन्नं । सव्वत्थ वित्तगणणे एस विहि हवइ नायबा ॥ ॥ ४२ विक्खंभ वग्ग दह गुण तम्मूले वट्टखित्त परिहि धुवं । विक्खभ पाय गुणिया परिही ता हवइ खित्तफलं ॥ ४३ दस विक्खंभे खित् समवट्टे किंपि जायए परिही । गुणिऊण भणहि पंडिय ! तसु खित्तफलस्स किं हवइ ॥ ४४ वट्टस्स य विक्खंभं तिउणं तह छट्ठमंसजय परिही । विक्खंभद्धे गुणिया परिहि दलं तस्स खित्तफलं ॥ ४५ जीवा सर पिंडद्ध सर गुणियं वग्ग दहगुणं काउं । नव भाए जं लई तस्स पए हवइ धणुह फलं ॥ ४६ धणुपिंडे इगवीसं जीवा पनरस छक छक जस्स सरं । भणि पंडिय ! गणियफलं किं जायइ तस्स धणु खितं ॥ ४७ सरवग्गं छगुणकियं जीवा वग्गहिय मूल धणु पिंडं । धणुवग्गाओ जीवा वग्गूण छभाय मूल सरं ॥ ४८ धणु सर जुयद्धहीणं धणुहाओ वग्ग चउण पय जीवा । पत्तेय गणियमाणं एयाण फलं हवइ नूणं ॥ ४९ बालिदे तिभुव दुगं मुरुजे दो धणुह चउरसं मज्झे । दो गुह जवाकारे कुलिसे चउभुव दु कप्पिज्जा ॥ ५० तिभुवं गयदंतोवम चउन्भुवं सगडचक्कवट्टसमं । चंदस्स सरिस धणुहं वट्टं परिपुन्न चंदसमं ॥ ५१ बालिदोवम खित्तं वित्थारे पंचवीस कर दीहे । दल लंबं तिन्नि धरा गयदंते किं हवेइ फलं ॥ ५२ निम्मागारे खित्ते उभयमुहे तिकर पंचकर लंबे । धरामुहे पण हत्थं ति मज्झि दह लंब कुलिसुवमो ॥ ५३ ॥ इति क्षेत्रव्यवहारसूत्रं समाप्तं ॥
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