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चतुर्थ व्यवहार द्वार दुन्ह वग्गंकं ठविउं वर्स भाए सेस अग्गिमो लहइ । वहु काइणि मग्गंतो पुरिसो तियपासि सो सहलो ॥ ७२
॥रिणलभ्यवर्गः॥ गरुड मंजोर सीहे साणे अहि उंदरे य मियँ मिढे । इय अट्ठवग्गजोणी पंचमठाणे हवइ वयरं ॥ ७३ . .
॥ इति पंचमे वैरम् ॥ तुरंय गये मेस अहि अहि साणं बिरालं च मेसें मंजारं ।
सुदुर पसु मैहिसं वैग्धं महिसी" य वैधं च ॥ ७४ मिय हरिण साणे वनरै निउलढुंगं वानरो य हरि रैयं सीहे पैसु हत्थैि एवं अस्सिणिमाईण जोणिकम ॥ ७५
॥ नक्षत्राणां जो (यो) नयः॥ सीह गये महिस-तुरयं मूसयै-मंजार वनरं-मेसं । अहि-निठेलं पसु-वग्घं मिय-साण विरुद्ध अन्नोन्नं ॥ ७६
॥ इति योनिवहरं ॥ वर - कन्नरासि सामि य सत्तू असुहा य सेस सुह वरणे । इय सत्तभेय पीई भणिय, भणामित्थ वीवाहं ॥ ७७
॥ इति वरणे सप्तधा प्रीतिः॥ अट्ठि वरिसेहि गउरी, नवि रोहिणि, दसहि कन्न, उवरित्थी। एवं जाव गणिज्जइ, बारहवरिसुवरि न गणिज्जा ॥ ७८ गुर-रवि - ससि लग्गबले गउरी सेसा इगेगि रहियकमे । इय भणिय सुह विवाहं न विवाहं सत्तवरिसतले ॥ ७९ पंच घडी तिहि अंते छह रिक्खंते य ति दिण मासते। दुहिय अउत्त विहव कमि हवेइ तिय पाणिगहणकए ॥ ८० रेवइ मह मिय रोहिणि मूल ति - उत्तरऽणुराह कर साई । बुह गुर सिय ससि वारा पाणिग्गहणे सुहा भणिया ॥ ८१
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