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चतुर्थ व्यवहार द्वार पण ससि अहुट्ठ सूरो तिन्नि गुरे दु दु वुहे य सुक्के य । सड्ड सणि भूमि राहे इय लग्गे वीस विसुवा य ॥ ३५
॥ इति लग्नभावः॥ अथ लग्नं यथाइग दु ति चउ पण नव दस सुहया सोमा ति गारहा सव्वे । कूर खडा ससि बीओ मुणि मज्झिम अहम अटुंता ॥ ३६ . असुहट्ठाणठिओ वि हु लग्गो कूरो न दोसकरणखमो । किंदु-तिकोणठिएहिं जइ दिट्ठो सुरगुरु- भिगूहि ॥ ३७ इय जम्म-जत्त - दिक्खा-रायभिसेयाइ- सूरिपयठवणे । बिंबपइट्ठ-विवाहे सुहलग्गो सयलकजेहिं ॥ ३८
॥ इति जन्म-यात्रा-राज्याभिषेक- सूरिपदादिसर्वसामान्यलग्नम् ॥ अथ विशेषकार्यमाहरिक्ख-तिहि लग्ग सुकमे नव पंच चउत्थयं ति पुरिम धुरे । दुन्नेग अद्ध घडिया वजह गडुंत अइदुट्ठा ॥ ३९
॥ इति गंडांतः॥ मूले तd छल्लि साहाँ पत्ते कुसुम्व फल सिहं च इय रुक्खं । चउँ सत्तं अ१ देह नवे पणे रसै भैवे घडिय सुकमि फलं ॥ ४० मूले मूलं तणि धेणु सहोव(य)रो छल्लि साह माक्खं । पत्तेऽपत्तक्वयं कमि मंती रजं च चिरजीवी ॥४१
॥ इति मूलनक्षत्रजातफलम् ॥ छ पणऽय़ात विणा वुहु दु ति किंदि तिकोण सुक्क -गुरु-चंदा । इय जम्मलग्गि सुहया ति गारहा सव्वि कूर खडा ॥ ४२ सुगिहुच्च-मित्तगिहजुय सणि कुज सूरो य मुत्ति दसम सुहा । अरिगय अणुच्च रिउजुय विन्नेया अस्थहाणिकरा ॥ ४३
॥ इति जन्मे ॥
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१ ।४७।१०।९।५
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