________________
२५
चतुर्थ व्यवहार द्वार सणि सुक्क राह केऊ रवि कुज रासिक्कि चंदसहिय जुई। बुद्ध - विहप्पइसहियं न हवइ कत्थेव जुइदोसं ॥ १४
॥ इति युतिः ॥ लग्गससि जो नवंसगु जामित्तनवंसगो य जेण गहो । चउवन्न जाव सुद्धं उवरे जामित्त जुइदोसं ॥ १५ ससि लग्ग सत्तमो जइ कूरगहो तं च चयहु जामित्तं । जत्थुभयदिसे कूरा चंदे अह लग्गि गलगहयं ॥ १६ .
॥ इति यामित्र-गलग्रहो द्वौ ॥ रविरिक्खाउ उवग्गह वजह पंचाट चउ दसऽट्ठारं । उणवीसं वावीसं तेवीसइमं च चउवीसं ॥ १७ विजुमुंह मूले असणी केॐक्को वर्ज कंपं निग्धार्य । इय नाम फलं कमसो अट्टेव उवग्गहाणं च ॥ १८
॥ इति उपग्रहः ॥ एगुड़ तिरिय तेरस रेहाचकमि विसमजोगिकं । समं जए अडवीसं तयद्ध तुल्लं च सिररिक्खं ॥ १९ सिररिक्खाउ कमेणं अट्ठावीसं ठविज नक्खत्ता । जइ इक्कि रेह रवि-ससि इक्कग्गलु तं वियाणाहि ॥ २०
॥ इति इक्कग्गल । इति लत्तयादिदोसाः॥ सणि पवणु अंसु पायं बुह गुर कलहं कुजऽग्गि रवि रत्तं । सुक्केण य संतावं अहिचक्के कित्तियाइ ससिनाडिं ॥ २१
॥ इति अहिचक्रदोषः॥ उदयाओ गय लग्गं संकंतीभुत्तदियह जुयसेयं । तं पंचहा ठवेउंतिहि" रवि दहं हूं मुणि सहियं ॥ २२ नवसेसं जत्थ पणं तत्थ फलं कलह अग्गिं रायभयं । चोरभयं मिच्चु कमे पइठ-विवाहे य ताऽरिष्टुं ॥ २३
॥ इति बुधपंचकदोषः॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org