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________________ १४ ठक्करफेरूविरचित ज्योतिषसार पण घडिय धणहराऽऽइम भयंकरी दह दुबालसंतकरी । विट्ठी तियघडियंतिम धण - कणयसुहंकरी जाण ॥ ३० मर्णे वसुं मुँणि तिहि" वेर्यो दहं रुदै ति पुव्वयाइ अट्ठ दिसे । पढमपहराइ भद्दा पिट्टि सुहा संमुहा असुहा ॥ ३१ ॥ इति भद्राचक्रम् ॥ गिहभूमि सत्तभायं पण दह तिहि तीस तिहि दहिकु कमे । इय दिण संख च [ उ ]द्दिसि सिर पुंछ समंकि वच्छठिई ॥ ३२ विच कोष्टकम् शनिचत्र कोष्टकम् मस्तके मुखे कंधे भुजौ हस्तयोः हृदये नाभिः गुह्ये जानुभ्यां पादयोः मस्तके दा० हस्ते कंठे ३ अल्पतुष्ट स्त्रीरत विदेस अल्पायु रविनक्षत्रात् रविचक्रम् । हृदये पादयोः वा० हस्ते नेत्रयोः २ Jain Educationa International ६ गुरु कोष्टकम् राज्यं लक्ष्मी विभूति राज्यश्री पीडा श्रीपति मिष्टभोजन स्कंधपति परदेसी ४ ४ तस्कर ईश्वर ४ ३ मृत्यु सुखप्राप्ति बृहस्पतिनक्षत्रात् गणनीयम् । जाव जन्मऋक्षम् । मुखे द० करे पादयोः वामहस्ते हृदये शीर्षे नेत्रयोः गुह्येः अशुभ शुभ शुभ अशुभ अशुभ शुभ अशुभ अशुभ शुभ अशुभ १ शनिनक्षत्रात् गणनीयम् । जाव जन्मरिक्षम् | शनिचक्रम् । ४ For Personal and Private Use Only ४ ४ mr २ २ राहु कोष्ठक रोग लाभ विदेश बंधन लाभ पूजा सौभा मृत्यु मुख नक्षत्र पुष्पित नक्षत्र फलित नक्षत्र अफलित नक्षत्र झडित नक्षत्र गुडि नक्षत्र राजस नक्षत्र तामस नक्षत्र शुभ नक्षत्र अशुभ रिक्ष राहुनक्षत्राद् । रेखाशुभाशुभः । www.jainelibrary.org
SR No.003822
Book TitleRatnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1996
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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