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________________ २. भटनेर में पाँच मनोरम विहारों में संस्थित जिनेश्वरों को उत्कण्ठापूर्वक नमस्कार करके अपने को अनेक प्रकार के सुकृतों से कृतार्थ करते हैं, उत्तम मनोरथ तो निश्चय ही भाग्य से फलते हैं। ३. त्रिभाटक में निर्मल जल वाली सतलज नदी को नौकाओं से पार करके जालन्धर और नगोदर व श्री बाजपाट में जिनेश्वरों को भाव पूर्वक नमस्कार करता हूँ। ४. नौकाओं से वहाँ विभागा (विपासा-व्यास) नदी को तैर कर नन्दौन में जा पहुँचे। पद्मा (?) को पार करके पातालगंगा और बाणगंगाको भी पार किया। ५. पर्वतों की आनंदोल्लासमयी सपादलक्ष संख्यक चोटियाँ परिलक्षित हैं, उन्हें एवं नदियों के उद्गम स्थान गिरिराज हिमाचल को देखो। ६. सब दिशाओं में ऊँचे ऊँचे महामानव स्वरूप मनोहर पर्वत है। स्थान स्थान पर सीधे-सरल सुगन्धित पुष्प युक्त वृक्ष हैं। पैरों से चलकर मार्ग-मार्ग पर झरनों से प्रवाहित पानी और शीतल वाय मनुष्यों के मन को अहंत वाणो की भाँति सुखी करती है। ७. इस प्रकार मार्ग वहन करते विनायक और कालिका स्थान से ऊपर जाने पर श्री संघ ने श्री नगरकोट महा तीथ को देखा। ८. समस्त तीर्थों में मुकुट भूत सुख का निवास, नेत्रों द्वारा देखने पर विनोद प्रदान करता है, मन को सुख देता है। कल्याण के सन्निवेश नगरकोट महातीर्थ को भजकर अपने को कृतार्थ करो। देवताओं के मठ, धर्मशाला, लोगों के अट्टालिका-महल श्रेणी, गगनचुम्बी उदार जिनालय, राजभवन, विनोदार्थ उद्यान, वापी और प्रपाओं वाले उस प्रदेश को देखकर भ्रान्ति होती है कि ये क्या देवताओं द्वारा निमित हैं? Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003821
Book TitleNagarkot Kangada Mahatirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherBansilal Kochar Shatvarshiki Abhinandan Samiti
Publication Year
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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