SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रवन समीप भए सित केसा । मनहुँ जरठपन अस उपदेसा ॥ नृप जुबराजु राम कहुँ देहू । जीवन जनम लाहु किन लेहू ॥ चम्पक सेठ सम्बन्धी रास में साधुदत्त भावी की अमिटता के सम्बन्ध में एक दृष्टान्त सुनाता है, किन्तु इसके विपरीत वृद्धदत्त की मान्यता है कि उद्यम के आगे भावी कुछ नहीं। इस सम्बन्ध में वह भी एक दृष्टान्त सुनाता है और यह सिद्ध करने का प्रयत्न करता है कि उद्यम का आश्रय लेकर विधाता के लेख में भी मेख मारी जा सकती है, किन्तु आगे की कथा से स्पष्ट है कि वृद्धदत्त विधि के विधान को टाल नहीं सका। चम्पक के मारने के प्रयत्न में वह स्वयं मृत्यु का शिकार हो जाता है। इस रास में 'भाग्य-लेख' नामक प्ररूढ़ि के साथसाथ 'मृत्यु-पत्र' नामक मूल अभिप्राय का भी बड़ा सार्थक और समीचीन प्रयोग हुआ है। चंपक के 'पूर्व जन्म वृत्तान्त' में जर्जर दीवाल की कथा कही गई है, जो बाल-कथाओं की सुपरिचित प्रश्नोत्तरकी माला-शैली में वर्णित है। इसी वृत्तान्त में कपटकोशा वेश्या की चतुराई का चित्रण हुआ है, जिसे पढ़ कर राजस्थानी की निम्नलिखित पद्यमयी लोकोक्ति का स्मरण हो आता है साहण हँसी साह घर आयो, विप्र हँस्यो गयो धन पायो। तू के हँस्यो रै बरड़ा भिखी, एक कला मैं अधकी सीखी ॥ धनदत्त श्रेष्ठी तथा पुण्यसार विषयक रास भी अपने ढंग के सुन्दर रास हैं। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003820
Book TitleSamaysundar Ras Panchak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy