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श्री पुण्यसार चरित्र चउपई ]
[१३७ . जीहो सुणी बात सोहामणी लाल, अहो अहो पुण्य' संसार। जीहो नवमी ढालइ निउंछणा लाल, माता कीधा राग मल्हार
। १४ स० [सर्वगाथा १५३ ]
॥ सोरठा ॥ अधिक वड़ो अपराध, मइ कीधो मतिहीण मह । गरूयो गुणे अगाध, खमिजे वछ ते खरो ॥१॥ शिक्षा हेत सुजाण, कहु वचन तुझनइ' कुमर । पुण्यसार तु प्राण--जीवन जनक कहइ सदा ॥२॥ सुत बोलइ सुणि तात, शिक्षा एह सुहामणी । संपद नारी सात, हेतु इणइ मुझनइ हुइ ॥३॥ आण्या जे अलंकार, छूतकार नै ते दविण । हरखी दीधं हार, राजा नो राजा प्रतइ ॥४॥ द्यूत विसन करी दूरि, पुण्यसार प्रणमी पिता। हाटइ सहु हजुर, बइठउ बाप तणइ कन्हइ ।।। वणिज अनइ व्यापार, करइ सदा कुमर आपणा। चालइ शुभ आचार, कथा कहुँ हिव पाछली ॥६॥
[सर्वगाथा १५६] ढाल (१०) राग-मारवणी, रुकमणि राणी अति विलखाणी, एहनी गई पाछी घरि ते गुणसुन्दरि, बहिना नइ कहइ वृतांत जी। सुन्दर सगुण सरूप सुलक्षण, किहां छोडी गयउ कंत जी ॥१॥
१ पुण्यवंत पुण्यसार, २ मुझनइ, ३ अमिय रसायण अग्गली
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