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श्री पुण्यसार चरित्र चउपई ]
॥ सोरठा ॥
इम करि इक उपवास, कर्यउ कुमर कौतुक करी पुण्य प्रमाणइ पासि, आवी देवि उतावली ॥ १ ॥ वच्छ म करि विषवाद, सरिस्यइ तुझ कारिज सही समऱ्यां देसुं साद, तूं समरे मुझ नइ तुरत ॥ २ ॥ हरषित हूउ अपार, पुण्यसार कीयो पारणो । सेष कला सब सार, सीखइ सही सनेह सुं ॥ ३ ॥ पढ्यउ कला पुण्यसार, आव्यउ जोवन अनुक्रमइ । पूरब करम प्रकार, दुष्ट व्यसन लागो द्यूत नउ ॥ ४ ॥ मात पिता मन रंग, कुमर न वरज्यउ तिहां कीयइ । सदा फिरइ ते संगि, जूआर्या
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मांहे जुड्यउ ॥ ५ ॥
[ सर्व गाथा ८०] ढाल (६) राग -- केदारा गौड़ो, चाल - कपूर हुवइ अति ऊजलो जी एम करतां तिण एकदा जी, हार्यो राणी हार | लाख मूल लक्षण भलउजी, अनुपम अधिक उदार ॥ १ ॥ रे नंदण सुणि तुं सीख सुजाण, तूं तो न करइ केहनी काण रे नं० राजा मागइ रंग सुं जी, आपड अम्हनउ हार सेठ जाइ घर सोधीयउजी, लाभइ नहीय लिगार ||२|| रे नं० ॥ जाण्यउ तिणि जुगत करी जी, सहीय लीयो पुण्यसार । गूझ करी नइ गोपव्यउ जी, पर कुण लहइ तसु पार || ३ | रे नं०। सेठि इसु चितइ सही जी, पुत्र हुउ प्रत्यनीक | जतन करी जायो हुतो जी, लाई इण मुझ लीक ॥ ४ ॥ रे नं० ॥
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