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________________ श्री पुन्यसार चरित्र चउपई ] चउथी ढाल कही चिति चंग सुं जी, मारू सांभलतां' सुख खाता संपजे जी, आणंद [ १२७ रागणि मांहि । अधिक उच्छाह || || [ सर्व गाथा ५६ ] ॥ सोरठा ॥ सुणिज्यो तात सयाण, बोलइ रतनवती वचन । पावक पइससि प्राण, पुण्यसार परणण परत ॥ १ ॥ मन महि चितइ एम, सेठ पुरंदर वचन सुणि । कहउ जुगति मिलइ केम, ए बाला दीसइ अधिक ।। २ ।। धुरि थी जे हुवइ धीठ, तरुण पणइ तरुणी तिका । नहीं रहइ ते नीठ, वारी थकी वरांगना ॥ ३ ॥ मुझ सुत चिंतामणि, मन ही मइ रहिस्यइ महा । तपइ घणुं ते तनि, एकरुखी न चलइ अवनि ॥ ४ ॥ [ सर्व गाथा ६३ ] Jain Educationa International ढाल (५) राग - मल्हार, नणदल री । रतनसार बोलइ रही, सुणिज्यो सेठ सुजाण हो साजण । मुग्धा पुत्री माहरी, करइ नहीं कछु काण हो साजण ॥ १ ॥ सुणि तुं वचन सुहामण, रंगि बोलइ ते रसाल हो साजण । समभावी तुम्ह सूंपिसुं, बाल बुद्धि ए बाल हो साजण ॥ २ ॥ दीधी मई तुम्ह दीकरी, निपट थाउ थे निचित हो साजण । तुम्ह सुतपरस्य तिका, करिस्यां विधि सहु कंत हो सा० ॥३॥ १ समयसुंदर कहै सांभलतां सदा जी । For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003820
Book TitleSamaysundar Ras Panchak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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