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श्री पुण्यसार चरित्र चउपई ]
[१२५ तड़कि करि बोलइ तिका रे, सुण मूरख सुलताण । नारि होइसि पुण्यवंत नी, गिण्यं तुझ नइ नवि ग्यान रे ॥६सुं॥ पुण्यसार बोल्यउ पछइ रे, सुणजे सहीय सुजाण । नियतइ नर सूझइ नहीं रे, परणु जे तुझ पराणि रे ॥७॥सुं०॥ नारि कहइ सुणि नीगुणा रे, नेह जोरइ नवि होइ। वली पुरुष वनता तणा, तूं रीस करीनइ रोइ रे ॥८॥सु०॥ कहइ कुमर सुण कामनी हे, जो परणुं तुझ जोर । दास करूं सब देखतां, कीजइ काहे बहु सोर रे ।।।।सु०॥ बोलइ बाला बोल९ रे, गहिला म करे गर्व। सुहणइ परणण मइ सही, सउंस कीधउ तुझ नइ सर्व रे ॥१सुं० वाद्या बेवे ते वली रे, विषमा बोल्या बोल । ढाल तीजी ढलती कही, आसा मिश्रित सुं अमोल रे॥११॥सुं०।।
[सर्व गाथा ४६] ॥ सोरठा ॥ आप आपणइ गेह, वाद करी आव्या बिन्हे । दाधउ वचने देह, पुण्यसार प्रमदा तणइ ॥१॥ किउ सरिस्यइ मुझ काज, चिंता बहुली चित्त मई। अन्न न खाऊ आज, ऊग मूंग सूतउ अधिक ॥२॥ सी चिन्ता सुत राज, पूछ्यउ सेठ पुरंदरइ । लोपी मन नी लाज, बोले वलतो बोल ते ॥३॥
१ ढाल तीजी आस्या मिश्र में समयसुंदर कहै अमोल रे। ...
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