________________
श्री समयसुन्दरोपाध्यायकृत
व्यवहार - शुद्ध विषये धनदत्त श्रेष्ठि चउपई
( दोहा )
नउ धर्म ।
शांतिनाथ जिन सोलमड, प्रणमुं तेहना पाय I व्यवहार सुद्ध ऊपरि कहुँ, चउपई चित्त लगाय ॥ १ ॥ भगवंत भाखै भो भविक, मोटउ साध जेहथी मुगति जाइयइ, सासता लहियै दीस ते अति दोहिलड, सूर वीर श्रावक नउ धर्म सोहिलउ, देवलोक श्रावक ना व्रत तउ पलइ, जड़ें हुवइ गुण इकवीस । नाम तुम्हे ते सांभलउ, वारू विश्वा बीस ॥ ४ ॥
शर्म्मा ॥ २ ॥ करइ कोय ।
सुख दे || ३ ||
नापइ टांक |
विणज करंतर वाणियउ, ओछु अधिक पिण ते ल्यइ नहीं, मन में नाणै सांक ॥ ५ ॥ सखर वस्त न कहइ निखर, निखर सखर न कहेय । जिण वेला देवउ कह्यौ, तिण वेला ते देय ॥ ६ ॥
झूठं कदि बोलइ नहीं, साधुं पहिलुं व्यवहार सुद्ध गुण, इम कह्यौ पांचे इन्द्री पखड़उ, ए बीजउ प्रकृति शांत तीजड काउ, चौथउ
नितमेव ।
कहै अरिहंत देव ॥ ७ ॥
गुण लीय ।
लोकां प्रीय ॥ ८ ॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org