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________________ चम्पक सेठ चौपई ] मतिसागर तिण गाम में, ईंधण आणी करै आजीविका, न टलै मुहतौ पिण भमतौ थको, गयौ लखमीपुर गाम । ईंधण भारी आणतो, दीठौ सुत तिण ठाम ॥ ८ ॥ पिता कह्यौ ए पुत्र स्यु, सगलो कह्यौ सरूप । भारउ आण उदर भरू, सारौ दिन सहुं धूप ॥ ६ ॥ बीजौ भारो बाप हुँ, पामू नहीं किण मेलि । इम हुं करु आजीविका, दिन दस नाखुं ठेलि ॥१०॥ राजपुत्र पणि आपणी, कहै आहेड़ा बात । बीजो जीव जुड़े नहीं, घणी मांडुं जौ घात ||११|| विमासीयौ, सही विध साची थाय । हुँ पिण उद्यम ऊपरें, करु हिव कोई उपाय ||१२|| [ ६६ भारी एक । विहनी टेक ॥ ७ ढाल -- शील कहै जगि हुं वड़ौ, एहनी सुत सांभलि सीख माहरी, पहुँचे तु वन मांहे रे । चंदन नौ भारौ भरे, बीजाने हाथ म साहे रे ॥ १ ॥ काजो रे । राजो रे ॥ २ ॥ ३० Jain Educationa International उद्यम पेखौ एहवौ, उद्यम थी सी उद्यम थी सुख संपजै, उद्यम थी लहियै सांझ सीम वनमें भमे, चन्दन न मिले तो तुझनै रे ! तौ भूख्यौ तिरस्यौ रहे, मुओ तो हत्या मुक्नै रे ||३|| ३० राजानो बेटी मिल्यो, तेहने पणि पूछ्यौ तिमही रे । तिण कौ आहे भमु, पणि एक जीव मिलै किमही रे ||४|| For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003820
Book TitleSamaysundar Ras Panchak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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