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[समयसुन्दर रासय परण्यां पांत्या बे जणा, नीसस्या ते नर नार । सु० अचरिज लोक नै ऊपनो, कुण थयौ एह प्रकार । सु० ॥३१॥ हु. ठाम बिमणा थया ठाव का, बांभण लही स्याबास । सु० राणे रावण पूछीयौ, वर कन्या नै पास, । सु० ॥३२॥ हु. कुण भेद थयौ कहो तुम्हे, जिम थयौ तिण कह्यो तेम।सु० पिता पास पहुता कीया; ले बेउ कुशले खेम । सु० ॥३३॥ हु० बात कही वृद्धदत्त नै, साधुदत्त सहु एम । सु० समयसुंदर कहै इम कह्यां, जिम तिम ते कह्यो तेम ।सु०॥३४॥ हुआ
[ सर्वगाथा १४६
वृद्धदत्त बोल्यो वली, भड़क्यो भूत भराड़। भाई तू भूलौ घणु, ए दृष्टान्त दिखाड़ि ॥१॥ काछड़ काठौ बांधि नै, उद्यम कीजै आप। दैव विधाता पिण डरै, काया छूट कांप ॥२॥ जे सिरज्यो ते थाईस्यै, बैस रहै बल छोड़ि। अधम तिके नर आलसू, खरी लगाडै खोड़ि ॥३॥ उद्यम करसण नीपजै, उद्यम पेट भराय। उद्यम घाट घड़ीजिये, उद्यम थी सहु थाय ॥४॥ साधदत्त जे तें कह्यौ, ते नहीं छै एकांत। उद्यम उपरि हुँ कहुं, ते सांभल दृष्टांत ॥५॥
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