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________________ ६४] [समयसुन्दर रासन पागडै पग दीधो तिण, तेहनै जई तूं झूबि सु०। जतने पिण जीवस्यै नहीं, डंक्यौ जे महा डुबि सु०६ हु० । ते तिमही कर आवीयौ, तेड्यो ज्योतिषी तेह सु०। कहि रे ते हिव किम हुस्य, इहां हिव संगम एह सु० ॥१०॥gi बांभण बोल्यो बीहै नहीं, हुस्यै ते तिमहीज सु० । बोलै लोक कां बापड़ा, खोड़ी चाढ खीज सु० ॥११॥ हु० . साप झूब्यौ सहु हलफल्या, कीधा कोड़ि उपाय सु०। गारुड़ी नाग मंत्र गुण्या, पिण गुण कोई न थाय सु० ॥१२॥ हुन कुमर अचेत थई पड्यो, नीली थई तसु देह सु० । कीधे जतन किसु हुव, जीवै नहीं एह सु० ॥१३॥ हु० वैद्य वड़ो कहै एह नै, घालौ मंजूषा मांहि । सु० नदी मांहि नांखौ तुम्हे, छेहलौ छै प्रतिकार । सु० ॥१४॥ हु० गंगा में बहती गई, पैंसे समुद्र मझार । सु० तिण समै मत्स तिमंगली, कीधो एह विचार । सु० ॥१५॥ हु० ऊंची गावड़ इम रह्यां, देखु छु हुँ दुख । सु० दांत पेई दरिआ तटै, मूकी पामै सुख । सु० ॥१६।। हु० मंजूषा मूकी तटै, करै जल मांहि केलि । सु० नारि पेई थी नीसरी, देखी दरिया वेलि । सु०॥१९॥ हु० वहती पेई आवती, देखी कुमरी तेह । सु० पाणी माहे पैसी करी, आधी लीधी एह । सु० ॥१८॥ हु० पेई उघाड़ी पेखीयो, एक पुरुष प्रधान । सु० विष विकार वाध्यो घणो, पायो अमृत पान । सु०॥१६॥ हु० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003820
Book TitleSamaysundar Ras Panchak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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