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विनयचन्द्रकृति कुसुमाञ्जलि सकल क्रिया गुण दाखवी,
अक्रिय रुचि पावइ लो अहो अ० ॥४॥ सुदृढ़ राज कुल दिनमणी,
जसु माय सुतारा लो अहो ज०। गज लंछन अति गहगहइ,
सहुनइ सुखकारा लो अहो स०॥ वप्र विजय मां विचरता,
ज्ञानतिलक उदारा लो अहो ज्ञा० ॥ विनयचन्द्र विनयई कहइ,
जिन जगत आधारा लो अहो जि० ॥५॥ ॥ श्री बाहुजिन स्तवन ॥
ढाल-योगिनानी बाहु जिनेश्वर वीनवु रे,
बांह दिउ मुझ स्वामि हो जिनजी बा० । भवसायर तरवा भणी रे,
तारक ताहरु नाम हो जिनजी बा० ॥१॥ जिणंदराय दर्शन दीजो आज,
जिणंदराय जिम सीझइ मुझ काज। आंकणी । कल्पतरु कलि मां अछउ रे,
वंछित देवा काज हो जिनजी वं०। तुम बांहि अवलंबतां रे,
लहियइ भव जल पाज हो जिननी ल०॥२॥जि०॥
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