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________________ विनयचन्द्रकृति कुसुमाञ्जलि ॥ श्रीचन्द्रप्रभु जिन स्तवनम् ॥ ढाल-आघा आम पधारो पूज अमघरि विहरण वेला चन्द्रप्रभु नइ चन्द्र सरीखी, कान्ति शरीरइ सोहइ । जेहनउ रूप अनूप निहाली, सुरनर सगला मोहइ ।।१।। तिणसुमो मन मिलियउ राज, साकर दूध तणी परइ ॥आंकणी।। पिण सकलंकित चन्द्र कहावइ, अकलंकित मुझ स्वामी । ते तउ अमृत रस नइ धारइ, प्रभु अनुभव रस धामी ||२||तिका तेहनइ सन्मुख चपल चकोरा, प्रसरत नयणे जोवइ । प्रभु दरसण देखण जग तरस, प्रापति विण नवि होवइ ॥३॥तिका चन्द्रकला ते विकला जाणौ, घटत बधत नइ लेखइ । साहिब नइ तउ सदा सुरंगी, वाधइ कला विशेषइ ॥४॥ति०॥ निशिपति नारी मोहनगारी, रोहणि नइ रंग* रातौ । प्रभु करणी परणी तजि तरुणि, अद्भुत गुण करि मातौ ॥शाति॥ राहु निसत्त करै प्रसि तेहनइ, जाणौ रू नौ फूभौ। तेहज राहु जिनेसर सेवा, करइ सदाइ उभौ ॥६॥ति. सीस मानता देवाधिपनी, शशिहर एहवं जाणी। 'विनयचन्द्र' प्रभु चरणे लागौ, लंछन नउ मिश आणी ॥७॥तिका ॥श्री सुविधिनाथ स्तवनम् ॥ ढाल-बिंदलीनी सुविधि जिणंद तुम्हारी, मोनइ सूरति लागै प्यारी हो। . जिनवर अरज सुणौ ।। * रस। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003819
Book TitleVinaychandra kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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