________________
[ ४६ ] वास्तविक श्रेय राजस्थानी और जैन साहित्य के यशस्वी विद्वान सादूल राजस्थान रिसर्च इन्स्टीट्यूट के डाइरेक्टर पूज्य श्रो अगरचन्दजी नाहटा, जैन इतिहासरत्न को है जिनकी सतत चेष्टा और प्रेरणा से शताब्दियों से ज्ञानभंडारों में पड़े हुए ग्रन्थ प्रकाश में आ रहे हैं। मेरी समस्त साहित्य प्रवृत्तियों के तो वे ही सर्वेसर्वा हैं अतः आत्मीयजनों के प्रति आभार व्यक्त करने का प्रश्न ही नहीं उठता। आशा है प्रमाद व उपयोगशून्यतावश रही हुई भूलों को परिमार्जन करके विद्वान पाठकगण अपने सौजन्य का परिचय देंगे।
-भंवरलाल नाहटा
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org