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[ ४४ . ] स्त्रियाँ थी, कमेवश उसका सारा धन नष्ट हो गया। एक बार चोरों द्वारा वस्त्र लुटे हुए चार मुनिराज उसके गांव में आये जो ठण्ड के मारे कांप रहे थे। धनदत्त कृपालु था उसने उन्हें वस्त्र दान दिया चारों स्त्रियों ने भी इस दान की बड़ी अनुमोदना की उसी के प्रभाव से तुम्हें चार महाराज्य मिले। एक वार किसी भव में तुमने मुनियों के मलिन शरीर को देखकर मच्छ जैसी दुर्गन्ध बतलाई जिसके कारण तुम्हें मच्छ के पेट में तथा धीवर के घर रहना पड़ा। इस भव से हजारवें भव पूर्व तुमने शुक को पिंजड़े में बन्द किया था उसी कर्मों से तुम्हें शुक होना पड़ा। अनंगसेना ने पूर्वभव में अपनी सखी को शृंगार सजी हुई देखकर वेश्या शब्द से संबोधित किया जिसके कर्मोदय से वह वेश्या हुई।
राजा उत्तमकुमार अपना पूर्व भव सुनकर वैराग्यवासित हो गया। उसने अपने पुत्र को राजपाट सौंपकर चारों स्त्रियों के साथ संयम ले लिया। फिर निर्मल चारित्र पालन कर अनशन आराधना पूर्वक चार पल्योपम की आयुवाला देव हुआ। वहीं से महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होकर सिद्ध बुद्ध होंगे। ___ कवि विनयचन्द्र ने सं० १७५२ में पाटण में चारुचन्द्र मुनि कृत संस्कृत उत्तमकुमार चरित्र के आधार से यह रास-निर्माण किया है। हमारे अभय जैन ग्रन्थालय में इसकी चारुचन्द्र गणि द्वारा स्वयं लिखित प्रति विद्यमान है जिसके अनुसार यह चरित्र बीकानेर में ५७५ श्लोकों में प्रथमाभ्यास रूप में बनाया है कवि
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