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________________ ( २१३ ) ran चौमासौ थे घर आवौ जावइ कहउ राजि कोइलउ परवत घूंधलउ देहु देहु नणदल हठीली संबरदेना गीतनी आज माता जोगणी नै चालो जोबा जइये सरवर खारो हे नीरस नयणा रो पाणी लागणो हे लो आठ टकै कंकण लीयो री नणदी थिरकि रह्यउ मोरी बाँह कंकण मोल लीयउ मेरे नन्दना चउमासियानी हठीला वयरी नी थारे महिलां ऊपर मोर झरोखे कोइली हो लाल कित लाख लागा राजाजी रे मालीयइजी तार करतार संसार सागर थकी अयोध्या हे राम पधारिया बीबी दूर खड़ी रहि लोकां भरम धरेगा ते मुझ मछामि दुक्कड जोसीड़ा नी मोहन सुन्दरी ले गयउ सोरठ देस सुहामण हरिया मन लागउ यत्तिनी गौतम स्वामी समोसर्यां धण री सोरठी मृगनयणी राधाजी रे कंत कहा रति माणि राजि जिनवर सु मेरो मन लीनो नणदल नी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only પૂ ६४ ६६ ६७ ७२ ७३ ७६,८८ ७६,१०६,१६१ ८० ८६,१०४ दह ६१,१७६ ε६,१२० हद ६६ १०१ १०२ १०३ १०५ १०६ १०७ १०६ ११४ १२६ १३२ १३७ www.jainelibrary.org
SR No.003819
Book TitleVinaychandra kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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