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________________ विनयचन्द्र कृति कुसुमाञ्जलि थई पूरी तेरमी ढाल जो, भाख्यो रे पूरब भव जिण शुभमती रे लो । सु० एतौ विनयचन्द्र दयाल जो, नृप परसंसा जेहनी कृत छती रे लो । १३ सु० ॥हा॥ राज देई निज सुत भणी, उत्तम नृप जिन भक्त ; गुरु पासै संजम लीयौ, च्यारे स्त्री संयुक्त ; १ . चारित पालै निरमलो, तप करि सोषे काय ; पूरब पाप पखालतां, कर्म निर्जरा थाय ; २ प्राते अणसण आदरी, पहुता वर सुर लोक ; च्यार पल्योपम आउखो, जिहाँ छै बहु विह्वोक ; ३ तिहां थी चवि नै सीझसी, महाविदेह मझार ; अविचल शिव सुख पामसी, नहीं जिहां दुख लिगार;४ ढाल (१४) गूजरी रागे वस्त्र दान नै ऊपरै रे, उत्तम चरित्र कुमार; सुख संपत लही, हां रे सुख पाम्या श्रीकार ; सु० इम जाणी नै दान द्यो रे, मन धरि हरख अपार ; १ सु० गुण गाया मुनिराय ना रे, धन्य दिवस मुझ आज; रास कीयौ मन रंग सुरे, सीधा वंछित काज ; २ सु० चारुचंद्र मुनिवर कीयौ रे, उत्तमकुमर चरित्र ; सु० ते संबंध निहालनै रे, जोड्यौ रास विचित्र ; ३ सु० ओछौ अधिको जे कह्यो रे, कवि चतुराई होइ ; सु० मिथ्यादुष्कृत वलि कहुं रे, ते सुणज्यो सहु कोइ ; ४ सु० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003819
Book TitleVinaychandra kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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