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________________ श्री उत्तमकुमार चरित्र चौपई १८५ हुँतो थयौ मूरख रे दाक्षिणवंत थी । मा० । बात कही सहु तुझरे । राज चाहुं पाछै । खोटी मति आछै । मां० । थाज्यो तो तुमनै रे स्वस्ति महीपति । मां०। अपजस आपो मुझ रे जे मंगलपाठी, मुझ रसना घाठी । मां ॥३॥ राजा भाषैरे अद्ध वैद्यक कियै । मां० । जावा न लहै वैद्य रे। वाचाल तजी नै, मन सुथिर भजी नै। मां०। ___ अनंगसेना नो घर जोऊ जेतले । मां०। तूं मत काढे कैद रे, कन्या राज आपुं, तुझ नै थिर था' ॥ ४॥ मा० ।। क्षण इक इहां रे हुं बइठो अर्छ । मां० । जोवो वेश्या गेह रे। नृप आणा लहता, सेवक तिहां पुहता। मां०। सहु गृह जोयो रे नवि पामियौ । मां० । पूछ सगला तेह रे, किहां राय जमाई, द्यो साच बताई ॥५॥ अधोदृष्टि जोई रही पण्यांगना । मां० । ऊतर नापै लिगार रे। विलखित मुख छाया, संकोचित काया। मां०। आवी सहु भाखी रे बात वेश्या तणी। मां० । जे छई गहन विचार रे शुकनै पूछीजै, निश्चय ए कीजै।६।।मा०॥ सूं विप्रतारै अम्हनै सूवटा । मां० । जेहवो छै तेहवो दाखि रे। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003819
Book TitleVinaychandra kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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