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विनयचन्द्र कृति कुसुमाञ्जलि ढाल प्ररूपी हो एह इग्यारमी, बीजै हिज अधिकार ; सार्थकता नी हो जे उपमा वहै, विनयचन्द्र गुणधार ; ११ सी०
सहु धीवर इण अवसरै, कुमरोत्तम ले संग ; मोटपल्ली आव्या मिली, कृत्य हेतु उछरंग ; १ मंडावै राजा तिहां, नरवर्मा उल्लास ; निज कुमरी में कारणे, अनुपम एक आवास ; २ घु ति निवेसनी जोवतो, बीजो जाण कैलास ; ते महल निजरै पड्यौ, आवै तेहनै पास ; ३ कारीगर कारिज करै, पणि गृह मांहे हाणि ; खिण खिण मां चूकै तिके, अंध परंपर जाणि ; ४ वास्तुक शास्त्र तणै बलै, बोले कुमर सुजाण ; ए गृह नी चातुर्यता, कुण करसी परमाणि ; ५
ढाल-१२ कंकणानी । तें चित चोस्यो माहरो रसीया, तूं छै पुरुष उदार।
मोरो मन रीझ रह्यो । हां रे तुझ देखी दीदार, मो० घर मां केही खोड़ छ रे,
एम कहै सूत्रधार ; मो०१ कुमर सीखावै सहु भणी रे, र० मन सँ तजि अहंकार ; मो० खोड़ हती जे गेह मंझार रे, र० न रही तेह लिगार ; मो० २ अचरिज सहु नै ऊपनो रे, र० वलि चीतइ सूतार ; मो० विश्वकरणनि ओपमा रे, र० एहिज लहै रे कुमार ; मो० ३
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