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________________ श्री उत्तमकुमार चरित्र चौपई १४६ तु तो हिव माहरौ प्रीतो थयो रे, तुझ नै दीठां उलसै गात रे ; ५ बो० तिहां वली सबलो सिंह विकूरबी रे, ते कहै मै दीठो इक सीह रे ; माणस नी लेतो वासना रे, - आवै छै इण वार अबीह रे ; ६ बो० न करो नींद कुमरजी थे हिवै रे, इण तरु ऊपरि रहो सचेत रे ; इतलै सीह तडूकी आवियो रे, फाटै मुख जलहलता नेत रे ; ७ बो० कुमर कहै स्युं करिस्यां वानरा रे, सीह तणौ भय मुझ न खमाय रे ; तिम वलि नोंद आवै छै पापिणी रे, ___करि करि वहिलौ कोइ उपाय रे ; ८ बो० राजि सूवो मुझ खोला मां तुमें रे, दोइ प्रहरनी द्यछै सीम रे ; कुमर सयन करि वानर अंक में रे, रयणि गमावै गलती हीम रे ; ६ बो० वानर नै भाखै इम केसरी रे, तुवन नो वासी छै नेट रे ; आस करै जो निज देही तणी रे, तो करि कुमर तणी मुझ भेट रे ; १० बो० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003819
Book TitleVinaychandra kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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