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श्री उत्तमकुमार चरित्र चौपई
ढाल (१३)
नणदल नी इण मन वेध्यो हे माहरो, सर विण केण प्रपंच हे सजनी ते कहै माहरै आगल, सबल करै मन खंच हे सजनी ; १३० तेज प्रबल एहनौ अछ, निरमल सूर समान हे स० नयणे अमृत रस क्सै, निरुपम योध जोवान हे स० २ इ. सारद वदन सोहामणो, हृदय कमल सोभंत हे स० रूपै मदन थकी रूयडौ, गौर वरण गुणवंत हे स० ३ ३० पुरुष घणा दीठा हुस्यै, कोइ न आवै दाय हे स० इण दीठां मन माहिलो, दौड़ी मिलवा जाय हे स० ४ ३० कवण अछै पिण जातिनो, ते कल न पड़े काय हे स० पूछयाँ विण हिव तेहन, मन किम ठाम रहाय हे स० ५ ३० ऊतर आपै डोकरी, सुंदरि म करि विलाप हे स० विरह गहेली तुं थई, जाग्यौ मदन नो ताप हे स० ६ ३० एह मन मान्यौ ताहरै, तिणि कारण सर जाण हे स० जौ चूकै ए निजर थो, तिण भय तुं तजै प्राण हे स० ७ ३० मोह तणै वसि जे पड़या, थाइ सही सुंअंध हे स० जिण सँ रस कस तिण विना, जाणै अवर ते धंध हे स०८ स्युं तुझनै नवि सांभर, इण मन्दिर नो हेत हे स० एहनै मिलवा टलवलै, पिण पहिली हो चित चेत हे स०६३० तेह वचन अवहेल नै, तेड़े कुमर सुजाण हे स० ऐ ऐ मन नी मोहनी, स्युं न करै काम हे स० १० इ०
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