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________________ श्री उत्तमकुमार चरित्र चौपई १३५ (यतः) नारी मिरगानयन, रंग रेखा रस राती, वदै सुकोमल वयण, महा भर यौवन माती ; सारद वचन सरूप, सकल सिणगारे सोहै, अपछर जेम अनूप, मुलकि मानव मन मोहै ; कल्लोक केलि बहु विध करै, भूरि गुणे पूरणभरी, चंद्र कहै जिण धरम विण, कामिणि ते किण कामरी; १ रमझमकते चालैं, हंसला रै हीयडै सालै हो ; च० रीसै नयण निहालै, पिण घात किसी परि घालै हो ; च०७ चरण कमल ने ठमकै, निशिदिन काछबियो चमकै हो ; च० नासि गयौ तिहां धमकै, जिम कायर ढोल नै ढमकै हो ; च०८ जेहनी जांघ विराजै, कदली थंभा स्यै काजै हो ; च० कटि देखी जसु लाजै, निज मां उपमान छाजै हो ; च०६ हृदयकमल सुविकाशै, सोहै दोइ पयोहर पासै हो ; च० एहवा ते प्रतिभासै, भली कनक कलश छबि नासै हो : च० १० बांह बिहुं लटकाली, अति ओपै ढुंब मुंबाली हो ; च० रुड़ी नै रलियाली, हीणी करि चंपक डाली हो; च० ११ करनी निरखि प्रकाश, आकाश थयो नीरास हो; च० कहज्यो मुख थी खास, ए भावांतर सुविलास हो ; च० १२ देखी मुख अरविन्द, दिवस नवि ऊगै चन्द हो ; च० माया सुरनर वृन्द, रांभया देखी किंनर नागिंद हो ; च० १३ रक्त अधर वलि जाणी, परवाली मन विलखाणी हो ; च० इण मोसु अति ताणी, तिण वासो कीधो पाणी हो ; च० १४ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003819
Book TitleVinaychandra kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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