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________________ श्री उत्तमकुमार चरित्र चौपई १३३ नवली भली कुमुदिनी विकसै, रवि ऊगमतें जेम रे; भर यौवन रवि ऊगै दिन दिन, कुमरी विकसै एम रे ; ४सु० भ्रमरकेतु राक्षस एक दिवस, भर दरबार मझार रे; नैमित्तिक नै पूछ चित धरि, प्रसन कहौ सुविचार रे ; ५ सु० कवण हुस्यै मुझ पुत्री नै वर, ते भाखै मतिवंत रे कहिस्यु तंत तुम्हारै आगलि, रीस म करज्यो अंत रे ; ६ सु० ताहरी पुत्री ने वर थासी, राजकुमर सुप्रसिद्ध रे ; तीने खण्ड तणो जे अधिपति, सगली बाते समृद्ध रे ; ७ सु० एहवौ वचन सुणी विलखाणो, मन मां चिंतै घात रे; देवकुमर लायक मुझ पुत्री, भूचर किम परणात रे ; ८ सु० इम जाणी मन मांहि न आणी, तास कहाणी जासरे; सायर में गिरिवर नै शृंगै, कूप कराओ खास रे;हसु० ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... पूर लूण कपूर धुरा धुर, कौणि मन विसवा वीस रे ; १० सु० जाली कुपक मांहि लगाई, पड़िवा में भय एह रे ; बात कही तें पूछी ते सहु, वलि सांभलि ससनेह रे ; ११ सु० ढाल एकादशमी सांभलतां, जाणीजै सदभाव रे ; विनयचन्द्र कुमर तिहां ऊभो, देखै अपणो दाव रे ; १२ सु० ॥हा॥ अवर निमित्ती नै वली, पूछई मन धरि राय ; मुझ पुत्री कुण परणस्यै, ते मुझ तुरत बताय ; १ ते जल्पै तेहनी पर, नृप मन आवी रीस ; कोड़ि उपाय कीयां इसुं, किम करिस्यै जगदीस ; २ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003819
Book TitleVinaychandra kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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