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________________ विनयचन्द्रकृति कुसुमाञ्जलि (८) श्री अंतगड़दशांग सूत्र सज्झाय ढाल - वीर वखाणी राणी चेलणाजी, एहनी आठमो अंग अंतगड़दशाजी, सुणि करउ कान पवित्र । अंतगड़ केवली जे थया जी, तेहना इहाँ रे चरित्र || १ || आ० कर्म कठिन दल चूरता जी, पूरता जगतनी आस । जिनवर देव इहां भासता जी, शासता अर्थ सुविलास ॥२०॥ सकल निक्षेप नय भंग थी जी, अंगना भाव अभंग । सहज सुख रंगनी तल्पिका जी, कल्पिका जास उवंग ॥ ३ आ०॥ एक सुयखंध इणि अंग नउजी, वर्ग छ आठ अभिराम । आठ उद्देशा छइ वली जी, संख्याता सहस पद ठाम ||४०|| आठमा अंग ना पाठमई जी, एहवउ छइ रे मीठास । सरस अनुभव रस ऊपजइजी, संपजइ पुण्य नी राशि || ५ ० ॥ विषय लंपट नर जे हुबइ जी, निरविषयी सुण्यां थाइ । जिम महाविष विषधर तणउ जी, नाग मंत्रइ सुण्यां जाइ ||६|| अमृत वचन मुख वरसती जी, सरसती करउ रे पसाय ! जिम विनयचन्द्र इण सूत्रना जी, तुरत लहइ अभिप्राय ||७|| ॥ इति श्री अंतगड़ दशांग स्वाध्याय ॥ ६४ (६) श्री अणुत्तरोववाई सूत्र सज्झाय देशी - नणदल बदली दे, एहनी ( नवमो अंग अणुत्तरोववाई, एहनी रुचि मुझ नइ आई हो । श्रावक सूत्र सुणउ ॥ सूत्र सुणउ हित आणी, एतो वीतराग नी वाणी हो ||१ श्रा०|| Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003819
Book TitleVinaychandra kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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