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(३९) आत्म-सिद्धि मंत्र
खण्डगिरि विजयादशमी ३-१०-५७
(राग-कान्हडो) परमगुरु ॐ सहजात्म स्वरूपए, जपु मंत्र सदाय अनूप रे.. प० परम कृपालु देव गुरु राजे, म्हेर करी मुझ उपरे... छिन्न परम्परोद्धार करी ने, बक्ष्यो मंत्र दधि-तुप रे.. प० १ परमगुरु ए जोयो जाण्यो, अनुभव्यो निज रूपरे; मान्य करूंछ प्रगटो तेहवो, म्हारो आतम भूप रे.. प० २ मान्य अमान्ये हूँ छस्वाधीन, अन्य तजू भूम कूप रे; संते मान्यु तेज प्रमाण्यु, श्रद्धा सम्यक् रूप रे... प० ३ कंइ नहीं जाणु मंद मति तोय, अन्य विकल्प चुप रे ; ज्ञान-पवन-मन स्थिर करी ध्याएँ, सहजानंदघन स्तूप रे.. प०४
(४०) परामक्ति पद
रत्नकूट-हम्पी, शरदपूर्णिमा २०१८
(शरद पूनम नी रातड़ी) शरद पूनम संध्या पछी चढ्यो चेतन-चन्द्र आकाश रे
भक्ति नो रंग लाग्यो रे... . रंगलाग्यो रंगलाग्यो रंगलाग्यो, रोमेरोमे जाग्यो उल्लास रे.. भक्ति०१ मिथ्यांधकार दशा टली, घट प्रगट्यो सर्वाग प्रकाश रे.. भक्ति० प्रसरी ज्या चिन्मय चांदनी, थयो पंकज वन विकास रे भक्ति०२
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