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________________ (३७) पयूषण स्तवन । सं० १६६७ बंबई दोहा-शासनायक वीजिन, गणधर गौतमस्वाम । युग प्रधान जिनदत्त गुरु, करीने तास प्रणाम ॥१॥ अर्थभेद दिनमान वली, आचरणा अधिकार । पर्व पजुसण नो कहुं, हेयाहेय विचार ॥२॥ ढाल-भक्ति हृदयमां धारजो रे, ए राग पर्व पजुसण वर्णना रे, भेद प्रभेद प्रसार । गणधर पूर्वधरो तणा रे, आगम ने अनुसार । हो भविका! मिथ्या भूमण निवारवा रे, सत्यासत्य विचारवा रे, सुणजो सहु नरनार ॥१॥ वर्षाकाले मुनिवरू रे, चौमासो एक ठाम । जीवदया कारण वसे रे रे, पज्जुसण तस नाम हो भ० ॥२॥ गृहिअज्ञात ने ज्ञात थी रे, भेद युगल तस कीध । अनिश्चित निश्चित पणे रे, तेहनो अर्थ प्रसिद्ध हो भव॥३॥ प्रथम भेद दो भेद थी रे, वीस पचास प्रमाण । सौ दिन ने सित्तेर नो रे, बीजे काल पिछाण हो भ०॥४॥ आषाढी चौमासी थी रे, संवच्छरी पर्यंत । अधिक मास जे वर्ष मां रे, दिवस वीस लहंत हो भ०॥५॥ सौ दिन पाछल कार्तिकी रे, चौमासी पडिक्कत । चंद्र संवच्छर जाणीए रे, पचास सित्तेरवंत हो भ० ॥६॥ ५३ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003818
Book TitleSahajanand Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandana Karani, Bhanvarlal Nahta
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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