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________________ (राग-कान्हड़ो) हंसा! मंडनपुर' तूं जा जा, जा कर लब्धि गुरु पद पूजा : पाद-प्रक्षालन क्षीर-सागर से, शुचि हो क्षीरोदक ला; गन्धोदक ले पद्मद्रहे जा, पद्म सहस्र-दल ले आ. • हंसा० १ रत्नद्वीप से रत्नो लाकर, भाव-शुद्ध ज्ञान-पूजा ; स्वस्तिक हेतु मानसरोवर, ला मुक्ताफल ताजा • हंसा० २ आत्मार्थे बोधामृत-पय पी, तँ कर तृप्त कलेजा; ज्ञेय भिन्न ज्ञानमूर्ति सो-अहं सोहं रटे जा हंसा०३ सोहं हंसो रटत रटत कर, देहाध्यास इलाजा ; मोह-क्षोभ मिटा हो अपना, सहजानंद पद राजा. हंसा० ४ १ मांडवी (३६) विद्यागुरु-उ० लब्धिमुनि-स्तुति _ ता० २६-११-६० - [छन्दः शार्दूलविक्रीड़ितः] सत्यत्यागतपः क्षमासुमृदुतासंतोषशौचार्जवब्रह्माकिंचनतागुणाः स्वसुखदा येष्वाश्रयन्ते सदा। येषांज्ञाननिधौ निमज्जनतया प्राप्ता मया देवगीः , कामक्रोधमदादिदोष विपदा येभ्य सुदूरे गताः ॥१॥ श्रीसङ्घन सुपूज्यपाठकपदं येभ्यः प्रदत्तं शुभं, . श्रीसङ्घश्च चतुर्विधः प्रमुदितो यैः पाठितः शासितः । श्रीमद्राजमुनीश्वराः सुगुरवो यान् दीक्षिताञ् शासिषुः)तान ५१ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003818
Book TitleSahajanand Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandana Karani, Bhanvarlal Nahta
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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