________________
॥ दोहा ।। पादकमल सेवे सदा, देव देवी तस ईश । मरुभूमि में कल्पसम, जय जिनदत्तसूरीश ॥१॥ मरु मालव मेवाड़ अरु, पंजाब सिंधु देश । मगध मिथिला गूर्जरे, विचरे मुल्क अशेष ॥२॥
राग-आशावरी समरयां संकट टारे, सूरीश्वर । स०। चड़नगरी ब्राह्मण निज चैत्थे, मरी गौ रख दीनी। व्यंतर द्वारा वो गुरुवर ने, शिव पिंडाधीन कीनी ॥ सूरी० ॥ १ ॥ विक्रमपुर माहेश्वरियों को, हैजा रोग सताया। जैन बनाकर कष्ट मिटाया, मिथ्या तिमिर हटाया । सूरी०॥२॥ भनशाली के गोत बचाया, सेवक जहाज तिराया। कुष्ट क्षयादि केइक रोगी, गुरु कृपाऽमृत पाया । सूरी० ॥ ३ ॥
दोहा मंडोवर जालोर अरु, रत्नपुरा नरेश । लौद्रव जेसलमेर अरु, चन्देरी पुरेश ॥ १ ॥ अम्बागर पुर राजवा, बोधे भविक अनेक । ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य मिल, सहस तीस लख एक ।।२।। सर्व-देश-विरति धरा, केइक समकितवंत । जैन संघवृद्धि करा, उपगारी भगवंत ॥३॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org