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________________ (१८) सिद्धान्त रहस्य गर्मित श्री तीर्थवन्दना स्तुति मोकलसर गुफा दोहा छंद सिद्धपद' निज' सम' अछे, व्यक्त गुणी छे सिद्ध । निजपद शक्ति' व्यक्तता, निमित्त कारण जिन' मृद्ध ॥१॥ उपादान' कारण सजी, ध्यावं सिद्ध स्वरूप । पण ते अलख• लखाय ना, रूपातीत अनूप१२ ॥२॥ तेज निधि छ व्यक्त ज्यां, रूपस्थ १४ श्री अरिहंत । ऋषभ वीर प्रमुख हता, छे विदेह'५ विचरंत ॥३॥ मोह'६ ग्रंथि विहीन' " जे, क्षायक' ' दृष्टि सुसंत'" । श्रेणिक कृष्ण प्रमुख ते, भावी • तीर्थ महन्त ॥४॥ तस २ विरहे २३ तस थापना,२४ अभिन्न ५ श्रद्धा धार । कारण ६ कर्त्तारोप२७ थी, नैगम नय२ ८ अनुसार ॥५॥ निश्रा अनिश्रागत' • अछे शास्वत : मंगल ३२ सार । भक्ति ए पंच भेद थी, जिनठवणा' अधिकार ॥६॥ देव सुभवन विमानमां, मेरु आदि गिरि शृंग। नंदीश्वर द्वीपादि ए, शास्वत चैत्य उत्तुंग ॥७॥ अष्टापद शत्रुजयो, समेतशिखर गिरनार । आबू तारंगा प्रमुख ते, भक्ति सुचेत्य उदार ॥८॥ मंगल-गृह-द्वारो परे, शेष भेद बे जेह । पाचा चंपा बनारसी, ग्राम नगर वन तेह ॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003818
Book TitleSahajanand Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandana Karani, Bhanvarlal Nahta
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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