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(१०) सहस्रफणा पार्श्वनाथजी का स्तवन
(चाल-नागरबेल ओ रोपाव)
मैंने सहसफणा प्रभु पास, दर्शन पाया सूरत में। मूर्ति मनहर मंगलवास, दर्शन पाया सूरत में ॥ ( टेक ) शीतल जिनवर प्रासादे, प्रणमुं प्रभु अति आह लादे । भूमिगर्भ में निवास, दर्शन पाया सूरत में ॥ १ ॥ उपसर्ग करे मेघमाली, वरसें वरसा विकराली । निमग्न प्रभु आनास, दर्शन पाया सूरत में ।। २ ।। प्रभु कष्ट निवारण भावे, धरणेन्द्र प्रिया युत आवे । निश्चल ध्याने थिरता तास, दर्शन पाया सूरत में ॥३॥ निज शिर प्रभु पद ठवेवी, वारी स्थिति पद्मादेवी । करे भक्ति चित्त उल्लास, दर्शन पाया सूरत में ॥४॥ अरु सहस्रफणा विकसावें, असुराधिप प्रभु शिर ठावे ।। आतपत्र सुरम्य प्रकास, दर्शन पाया सूरत में ॥५॥ अरे मूढ अकारज कीनो, प्रभु दुखी पातक लीनो । तुझ उपगारी प्रभु पास, दर्शन पाया सूरत में ॥६॥ नागेन्द्र बोधामृत पावे, मेघमाली शीश झुकावे । याचे खामणा प्रभु पास, दर्शन पाया सूरत में ॥७॥ इत्यादि वर्णन सारा, अति अद्भुत दृश्य चितारा । दर्शक देखत ही विश्वास, दर्शन पाया सूरत में ॥८॥
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