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________________ अजपा जाप आहार दई, सास दोरड़े बांध : . निश दिन सोवत जागते, एज लक्षने सांध२ अथवा संताधीन था, अवर न कोई इलाज ; गुरुगम सेवत पामिए, सहजानंदघन राज..३ अरनाथ चै० १८ उभय नय अभ्यासी ने, द्रव्य-दृष्टि धरी लक्ष ; तदनुकूल पर्यय करी, भर-प्रभु धर्म प्रत्यक्ष १ भेद-दृष्टि व्यवहारी ने, थइ अभेद निज द्रव्य ; निर्विकल्प उपयोग थी, परमधर्म लहो भव्य २ परम धर्म छे ज्यां प्रगट, सद्गुरु संत नी सेव ; सहजानंदघन पामवा, पुष्टालंबन देव...३ मल्लिनाथ चै० १६ घाती-घातक मल्लि-जिन, दोष अढार विहीन ; अवर सदोषी परिहरी, थाओ जिन-गुण लीन १ जिन-गुण निज-गुण एकता, जिनोव्ये निज-सेव; प्रगट गुणी सेवन थकी, प्रगटे आतम देव.२ दोषी अदोषी परखिए, संताश्रय धरी नेह ; तो सहेजे निपजाविओ, सहजानंदघन गेह...३ मुनिसुव्रत चै०२० आतम धर्म जणाय छे, मुनिसुव्रत जिन ध्याइ ; बीजा मत दर्शन घणा, पण त्यां तत्त्व न भाइ...१ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003818
Book TitleSahajanand Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandana Karani, Bhanvarlal Nahta
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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