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देह-आत्म-क्रिया उभय, भिन्न म्यान असि जेम ; जड़ किरिया अभिमान तज, संवर किरिया प्रेम ..२ ज्ञानादि गुण वृन्द पिण्ड, सोहं अजपा जाप ;
संत कृपा थी पामिए, सहजानंदघन आप...३ वासुपूज्य चै० १२
घासुपूज्य-जिन सेवना, ज्ञान-करम फल काज ; करम करम-फल-नाशिनी, सेवो भवोदधि पाज...१ निज पर शुद्धि कारणे, भजिए भेद विज्ञान ; निज-निज परिणति परिणम्ये, प्रगटे केवलज्ञान...२ स्वरूपाचरणी संत छे, भावलिंग विश्राम ;
भेदज्ञान पुरुषार्थ अ, सहजानंदघन ठाम"३ विमल चै०१३
झगमग ज्योति विमल प्रभु, चढी अलोके आज ; हृदय-नयण निरख्या अहो ! भाग्यो विरह समाज...१ दिव्य-ध्वनि अनहद सुणी, अति नाचत मन मोर; सुधा-वृष्टि पाने छक्यो, करत पपैयो शोर...२ उछलत सुख सायर तरल, लीन थयो मन-मीन,
संत-कृपा सहजे सध्यो, सहजानंदघन पीन"३ अनन्त चै० १४
अनंत चारित्र-सेवना, आत्म वीर्य-थिर रूप , टके न ज्यां सुरराय के, भेखधारी नट-भूप"१
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