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अंध परंपर चर्म-ग, आगम तर्क विचार ; तजी भाव-योगी भजत, प्रगट बोध निरधार...२ तीर्थकर ने संत मां, ध्येये भेद न कोय ;
सत्पुरुषार्थ सेवतां, सहजानंदघन होय ..३ संभव चैः३.
स्व-स्वरूप प्रगटाववा, से, संभष देव ; सतत रोमांचित थिर-मने, सत्पुरुषारथ टेव...१ सदा सुसंताधीन करी, कार्य देह-मन-वाक् ; सेवन थी सहेजे सधे, भवस्थिति नो परिपाक . २ ध्येये ध्यान एकत्त्वता, बीजी आश निराश ;
असंभव रही संभवे, सहजानंदघन वास...३ अभिनन्दन चै.
लहुं केम स्याद्वाद मय, अनेकान्त शिव-शर्म ; - स्वानुभूति कारण परम, अभिनंदन तुझ धर्म...१ नय-आगम-मत-हेतु-विख,-वाद थकी नवि गम्य; अनुभव संत-हृदय वसे, तास सुवास सुगम्य...२ असंत-निश्रा भान्तिदा, टाली सकल स्वच्छंद ;
संत कृपाए पामिए, सहजानंदघन कंद...३ मुमति चै०५
. आतम अर्पणता करूं सुमति चरण अविकार ; .. वामादिक गुरु-अर्पणा धर्म-मूढता धार...१
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