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क्रोध लोभ मद कपट ना, कर्ता कारयिता न ;
अनुमंता ना झुंज हुँ, सहजानन्द शिव खाण."१२५ भेदाभ्यासी मुमुक्षुओ, सहज थाय मध्यस्थ ;
. प्रतिक्रमण-परमार्थथी, रहे सदा स्वरूपस्थ "१२६ बाह्यांतर जल्पो तजी, रागादिक मल धोइ ;
कारण प्रभु ने ध्यावा, प्रतिक्रमण कर ओइ.१२७ आत्म-लक्ष खंडित थर्बु, विराधना-जड़-एज ;
ए अपराध ज ना करे, प्रतिक्रमण मय तेज १२८ दर्शन-ज्ञाने रमण वण, छे बधु अनाचार ;
प्रतिक्रमण मय तेज जे, रहे स्वरूपाकार.. १२६ वीतराग-जिनमार्ग वण, शेष सकल उन्मार्ग;
प्रतिक्रमण मय ते चले, रत्नत्रयी सन्मार्ग...१३० निदान माया भांति त्रय, कांटेथी जे मुक्त ;
अनुभव-पथ चाली शके, प्रतिक्रमण संयुक्त ..१३१ मन वच काय विकार तजी, त्रिगुप्ति-गुप्त सुसंत ;
मन-वच-तन मौनी मुनि ज, छे प्रतिक्रमणवंत "१३२ धर्मध्यानथी शुक्लमां, समजी जेह शमाय ;
आर्त्त-रौद्रता छोडीने, प्रतिक्रमण मय थाय"१३३ देह भावनाथी गयो, व्यर्थ अनादि काल ;
आत्म भाषना भावरे, जीव ! करे का वार ?...१३४ जेम हजारो पुट लही, सहस्र-पुटी बलवान ;
आत्म भावना पुट दिधे, आत्मा सिद्ध समान"१३५ २३४
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