________________
१२६ लोकनालि दशन २१ न जड़-मान मतार्थिता १३८-३६ १३० शब्द-ज्ञानी (नं०७४ का हिन्दी) अनुभव क्या जाणे
व्याकरणी. १४० १३१ विरह की सार्थकता ७ चर अचर मिल है देहधारी १४० १३२ आत्म स्वरूप ७,२, २, मुझ निर्मम सम घर हुँ १४२ १३३ भेद विज्ञान ४ /भिन्न छु सवथी सर्व प्रकारे १४३ १३४ ,, हिन्दी ४ भिन्न हुं सबसे सबही प्रकारे १४३ १३५ श्रद्धा रहस्य-- ५ समझो श्रद्धा प्रयोग प्रक्रिया १४४ १३६ अनंतानुबंधी कषाय स्वरूप ६ जो जो उभासामे भटा १४४ १३७ अप्रत्याख्यानी कषाय स्वरूप ५ अविरति क्षोभ जमावे १४५ १३८ प्रत्याख्यानी , ४ जीतो ठग प्रत्याख्यान ने १४६ १३६ संज्वलन कषाय ,, ५ साधो भाई अप्रमत्त पद लीजे १४७ १४० बिरह ५ लागी मोहे पियु मिलन की चटकी १४७ १४१ , ४ मेरे घट सुलगी होरी १४८ १४२ असली नशा ४ सद्गुरु भंग पिलाई १४६ १४३ सच्चे भक्त ४ सच्चे भक्त न हो मन चोर १४६ १४४ प्रेरणा ४ क्यों चोरो प्रभुको देकर मन १५० १४५ सत्संग रंग ३ साचो सत्संग रंग द्वंद्व जंगजीते १५० १४६ मंगल वाक्यो ५ विद्या भण्यो टली नहीं अविद्या १४५ १४७ साधकीय त्रण दोष १० बिशुद्ध आतम ध्यान १५२ १४- मूल भूल ४ जीवड़ो पोते पोतानी भूले १५२ १४६ मनना १८ विघ्नो ५ दोषो अढार कहुँ सांभलोरे १५३
४०
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org