SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 184
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्यक्-श्रद्धा योग प्रयोगे, स्व-पर-विज्ञान सधेरी; . आतम-दर्शन-ज्ञान-रमणता, जाग्रति साधक चेरी...अवधू० ३ पूर्ण केवल-चैतन्य-घन मूर्ति, मुक्त जीवन भव-फेरी; अनंत-चतुष्ठय. भूप स्वरूपे, तूर्या अवस्था येरी...अवधू० ४ सद्गुरूराज कृपाबल से ये, स्वप्न सुषुप्ति नशे री; जागत उज्जागत्त हो अपना, सहजानंद विलसे री...अवधू० ५ __(१५४) शीलोपदेश ८-१.५८ क्षत्रियकुंड-हिल प्रवेश-पोष दशमी २०१४ ।। पराभक्ति पढो सुमति ! सुशीला तुम बनो सच्ची; प्रभु की भक्ति बिन तेरी, महिमा शील की कच्ची...१ शरीर भिन्न आत्म-ज्योति में, रहे चित्त वृत्ति लीन यदा; यही चारित्र धम यही, सुशील-स्वभाव सौख्य-प्रदा...२ कुशील-तन से लहे जीव नर्क, तन सुशीले नृ-स्वर्गीय-भोग; शुद्धात्म-सुशील से मुक्ति, सधे प्रभु भक्ति से यह योग...३ अतः प्रभु-भक्ति की युक्ति, पठित हो दे परीक्षा शील; रमो निज शुद्ध सहजानंद, वमो यह दुखद भव मंजिल...४ चित्रकाच्य १ अकविंशति-दल-कमल-बद्ध दोहाशम दम खम गम अममता । मन मह-मग सम-सीम ।। महि मह मठ यम-भ्रम मरा । नम नम मम-मति हिम ॥१॥ चित्रकाव्य २ द्वाविंशति-दल-कमल-बद्ध-दोहा । जिन चरनन नत-नयन मन-मनन जनन विज्ञान ॥ अरि-बन-खनन-हनन शरन धन ! धन! नर-तन शान ॥२॥ १५५ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003818
Book TitleSahajanand Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandana Karani, Bhanvarlal Nahta
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy