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(१४२) असली-नशा
खण्डगिरि ६-१०-५७
राग-होरी . सद्गुरु भंग पिलाई...लाली अँखियन छाई... आप छकी दोय छकी मोरी नयनां, तन मन तपत बुझाई : व्यापी रोमे रोम खुमारी, अधर रहे मुसकाई
प्रेम सुधारस पाई"स० १ वीणा घंट सितार बांसुरी, नौबत डफ तबलाई : धौ धौ धप मप धननन वाजे, शंख मृदंग शहनाई
. अनहद शोर मचाई...स० २ कोटी चंदा सूर प्रकाशे, बीज चमक चमकाईखिली अमल कमल पाँखुरियां, दिव्य सुगंध फैलाई
___सूघत भौंरी अघाई."स० ३ चिन्मय-सहजानंदघन-मूरति, आप विराजत आई : सहस्रदली शय्या पै पियुजी, अर्की गे अपनाई
श्रद्धा सुमति वधाई. • •स० ४ (१४३) सच्चे भक्त
खण्डगिरि ६-१०-५७ सच्चे भक्त न हों मन-चोर.... उदय प्राप्त परिग्रह तन धन, राज समाज की दोर : अहँ-मम विहीन ट्रष्टी हो वे रहें, कर्म योगी कठोर "सच्चे० १ प्रभु-पद-वेदी मन बलिदाने, तकें न फल की ओर, प्राप्त परिस्थिति समरस विलसत, सु व दुख कल्पना तोर . स ०२ लाभ अलाभ जन्म मृत्यु द्वन्द्व, सभी विकल्प मरोर ; भूति-भगवन न्याये सब में, प्रभु दर्शन शिर मौर.. सच्चे० ३ रहें निराश दास प्रभु के, स्मरण निरंतर जोर : सहजानंदधन प्रभुपद सेवी, जारें कर्म अघोर.. सच्चे०४
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