________________
(१०३) सुमति झवेर संवाद मारवाड़ पाली गिरि-कंदरा २००६ मार्ग सु०७ [ देवी सुमति निज सखी गृह द्वारे नीचे प्रमाणे गाती प्रवेश करे छेझवेरव्हेन–सखि सुमति ! अली तुं शुं गाय छे ? सुमतिव्हेन-निज आत्मोद्धार मां प्रवर्ततां थएला अनुभव ने गाऊं छु समाजोद्धार नी भुंगल फुकती मुज सखि ने ते वखते मार्गदर्शक थइ पड़े झवेरव्हेन--अलि फरी थी गाव! सुमति गाय छे झवेर बहेन दिंग थई विचार कूप मां निमग्न थाय छे, सखि नुं स्वागत करवानुय भुली जाय छे । ॐ अवधूत ]
राग-पूरबी . जोयूं मैं धर्माचार्य धींग
...जोयु मत ममता रस छाक छकाने, नाचे तागड़ धींग जोयु ०१ जड़ किरिया आडम्बर तोपे, पोषे बाहिर लींग; आप भमे जग ने भरमावे, अंधो अंध घडिंग.. जोयु ०२ धर्म मर्म विण करे भाटाइ, करे मूर्ख में दींग ; मोह नींद मां पूंपू पादे, चावी वायवडिंग जोयु ०३ गुणीजन ने कनडे जेम औषध, होमियोपेथिक हींग ; मोहजाल मां फंसे फंसावे, जेम साबर ने सींग. जोयु ०४ बुडी मर्यु ढांकणी भर जल मां, भारत भूपति वृंद ; वारो आव्यो हवे तमारो, शाने ताणो नींद...जोयु ०५ द्वेष रहित हुं साच कहूं छु, अनुभव - हेडींग ; सहजानंद प्रभु महेर करे तो, थाय ए सीधा सडींग...जोयु ०६
१२२
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org