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तेथी देह धरी भव भटके, लाख चौरासी मदारी; ज्ञान-क्रिया-कर्ता शुद्ध नय थी, सहजानंद विचारी.. कर्त्ता० ४
जीव मोक्तृत्व पद
राग-खम्माच जे जे क्रिया ते ते सर्व स-फल कर्ता-भावे.. .(२) जेवी क्रिया जेवा भावे, तेनुं फल ते ते प्रकारे खाडो खोदे तेज पड़े, अनुभव मां आवे. जे०१ खाय ज्हेर थाय मरण, छतां अनल व्यापे ज्वलन हिम-प्रदेश गमन वदन, दाँत कड़कडावे. जे०२ कषाय अकषाय वहे, बंध मोक्ष आप लहे... बंधे-दुःख मोक्षे-सौख्य, मोक्तृत्व भावे.. जे०३ तज कषाय भज स्वभाव, शुद्ध वीतराग नाव ; सहजानंद-भोक्ता जीव, छो स्वतंत्र दावे. जे०४ मोक्ष-स्वरूप पद
११-१०-५७ जे जीवनो शुद्ध-स्वभाव, कषाय अभाव ;
परम-गुरु-जन थी, छे मोक्ष चित्त-शोधन थी... नय-अनुपचार कर्ता-भोक्ता, जीव कषाय-भावे संसr, छूटी शकाय छे ते कषाय विघन थी. छे मोक्ष० १ होय क्रोधादिक नु तीव्रपणुं, वैराग्य बले थाय मंद घणु; अपरिचय अन्-अभ्यासे उपशम क्षय थी छे मोक्ष० २
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