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साँप मोरादिक वैर थी, सिद्धि जन्म व्यतीत...७ पुनर्जन्म नी परम्परा, जोतां न जड़े आदि ; तेथी सहजानंद कंद, जीव अनंत अनादि जड़ विज्ञान प्रयोग थी, उत्पन्न जीव न थाय; अनुत्पन्न नो नाश नहीं, तेथी नित्य सदाय नाना मोटा रूप मां, नानुं मोटुं न दीव; बाल वृद्ध युवा वये, नानु मोटु न जीव. १० विविध घर मालइ जतां, रत्न- दीप नहिं नाश; तेम विविध देहे जतां, जीव रहे अविनाश ..११ पदः झूलणा छंद
नित्य नित्य आतमा नित्यछु :
१
भले मरे शत्रुओ, राग द्वेषादिओ,
तो पछी मरण भय केम म्हारे ?
वीर्य - श्री न्युं माटी नु ढेकुआ,
अमर परमाणु-जीव मरे न क्यारे... १
क्षण क्षणे मली - विखरी दशा पलट पण,
ह
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जाय शमशान मां जड़-स्वभावे ;
दर्पणे दृश्य देखाय पण ते कदा,
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नित्य परमाणु निज धर्म दावे ... नि० २
तम देखाय शरीरादि मारा विषे,
उभय मली थाय ना एक रूपे ;
पण कदी थायना मुझ स्वरूपे • • • नि० ३
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