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(६९) दिव्य - सन्देश
राग - मालकोश
सहजात्म स्वरूप परमगुरू (२) बीजो प्रगट श्री राम महावीर, कलिकाले ए कल्पतरु, अचिन्त्य - चिन्तामणि चिन्मूर्ति, कामधेनु ने कामचरु• • स० १ त्रिविध ताप हरे भूम भांगे, सिंची सुधारस भूमि-मरु... निष्कारण करुणा रस - सागर, वाट चढावे वाट सरू • स० २ षमकाल ना दुर्भागीओ ? ल्यो-ल्यो एनु शरण खरू ; बोध पुरुष गुरुराज प्रभु नुं, सहजानंदघन स्मरण करू. स० ३ [ श्रीमद् राजचंद्र पत्रांक ६८० का पद्य रूप ] (७०) भावना
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४-१०-५७
हे काम ! जा बेकाम रे निर्लज ! दूर हटो हे मान ! हे सँग उदय ! जा अस्ताचल पर मौन रहो हे जबान ।.. हे मोह । तेरा न मोह हमको, हम नहीं तेरे गुलाम;
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१८-१-५८.
हे मोह दया ! जा जा अब झट पट, तुम पर दया हराम...२ हे शिथिलता होजा शिथिल तूं, कभी न आ मम अंग; हे देहाध्यास ! खवास ! भागजा, हमें नहीं कर तंग...३ हे परमगुरु सहजात्म स्वरूपी ! ममहिय करो निवास; तुमरे दर्शन - स्पर्शन से ही नित्य सहजानंद विलास...४ [ श्रीमद् रामचंद्र पत्रांक ७७ पृ० ८२३ )
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